मंगलवार, 12 जून 2012

संसार में सब दु:खी क्यों हैं?


एक बार किसी ने पूछा — ''संसार में सब दु:खी क्यों हैं?
दूसरे ने हंसकर उत्तर दिया — ''खुशियां तो सबके पास हैं, बस एक की खुशी, दूसरे का 'दर्द' बन जाती है''

2 टिप्‍पणियां:

  1. कहने का भाव यही है कि अधिकांशत: किसी भी परिवार या कार्यालय में देखा जा सकता है कि किसी की तरक्की या उसके धनवान बनना दूसरे को अच्छा नहीं लगता। इसका मतलब यह नहीं है कि यह सभी पर लागू होता है, ले​किन व्यवहार में इसका परिणाम देखने को मिलता रहता है।

    हम अपने व्यवहार में यह अवश्य लायें कि यदि कोई भी व्यक्ति चाहे वह परिवार अथवा कार्यालय में अपनी तरक्की करें तो उसकी तरक्की में हमें भी खुश रहना चाहिये।

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